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बहुत समय पहले की बात है। एक घना जंगल था। उस जंगल के एक विशाल वटवृक्ष की खोल (तने के अंदर) में बहुत से बगुले रहते थे। यह वृक्ष नदी के किनारे स्थित था, इसलिए बगुलों को भोजन और पानी की कोई कमी नहीं थी। वे सुख-शांति से अपने परिवार के साथ रहते थे। लेकिन उसी वटवृक्ष की जड़ों में एक काला, क्रूर साँप भी अपना बिल बनाकर रहता था। वह अत्यंत चालाक और हिंसक था। जब भी बगुलों के अंडों से बच्चे निकलते, वह साँप चुपचाप बिल से निकलता और बगुले के नन्हें बच्चों को खा जाता। यह दृश्य बार-बार दोहराया जाता रहा, जिससे बगुले अत्यंत दुःखी और परेशान हो गए। इनमें से एक बूढ़ा बगुला तो इस दुख से इतना व्यथित हो गया कि उसने भोजन करना छोड़ दिया और एक दिन उदास होकर नदी किनारे बैठ गया। उसकी आँखों में आँसू थे और चेहरा चिंता से मलिन था। उसी समय वहीं पास में एक केकड़ा पानी से बाहर निकला। उसने बगुले की यह हालत देखी और पूछा, “मामा! क्या बात है? आज इतने दुःखी क्यों हो? आँखों में आँसू क्यों हैं?” बगुला बोला, “भैया! दुःख की बात यह है कि हर बार जब मेरे बच्चे पैदा होते हैं, तभी यह दुष्ट साँप उन्हें खा जाता है। मैं बहुत प...