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नरक के बीच खड़ा वो 23 वर्षीय जवान

"वो 23 साल का था। वो कोई बच्चा नहीं था,
वो नरक के बीचों-बीच खड़ा एक इंसान था।"


12 अप्रैल 1945। जापान के ऊपर उड़ते एक B-29 बॉम्बर विमान में सवार थे सार्जेंट हेनरी एर्विन।
काम बिल्कुल यांत्रिक था — धुएं वाले बम गिराना ताकि हवाई हमला सही दिशा में हो सके।
लेकिन तभी, कुछ गड़बड़ हो गई।
एक बम वापस उछलकर विमान के अंदर ही फट गया... और सीधा एर्विन के चेहरे से टकराया।
उस धमाके ने उनकी आंखों की रोशनी छीन ली, नाक उड़ा दी, और चमड़ी को हड्डियों तक जला दिया।
पूरे विमान में धुआं भर गया।
पायलट को कुछ दिख नहीं रहा था।
विमान गिर रहा था — बेकाबू, धधकता हुआ।
वो पल एक उड़ते हुए ताबूत जैसा था।
और फिर... असंभव को हकीकत बना दिया एर्विन ने।
अंधे, जलते चेहरे और असहनीय पीड़ा से टूटे शरीर के साथ, एर्विन नीचे झुके... और नंगी हथेलियों से उस जलते बम को उठाया।
उन्हें अपने साथियों को बचाना था।
धीरे-धीरे, इंच दर इंच, घिसटते हुए जबकि उनकी चमड़ी पिघल रही थी और धुआं उन्हें घुटन दे रहा था।
वे नेविगेटर की मेज से टकरा गए। रुकना मुमकिन नहीं था।
उन्होंने एक हाथ से बम को ऊपर उठाया... और उसे अपनी ही छाती से भींच लिया।
और वे आगे बढ़ते रहे।
कॉकपिट तक पहुंचे, एक खिड़की ढूंढी। मिली।
और आखिरी सांस लेते हुए, उन्होंने बम को बाहर फेंक दिया।
वे नीचे गिरे, जलते हुए शरीर के साथ।
लेकिन विमान... और उसके सभी साथी बच गए।
पायलट ने मुश्किल से 300 मीटर की ऊंचाई पर विमान का नियंत्रण फिर से पा लिया और उसे इवो जीमा पर लैंड करा दिया।
एर्विन ने अपने लिए कुछ नहीं माँगा — बस अपने साथियों के बारे में पूछा।
आग बुझाई गई। मॉर्फिन दिया गया।
डॉक्टर घंटों तक उनकी आंखों से वाइट फॉस्फोरस निकालते रहे जो हवा लगते ही फिर से जल उठता।
कोई नहीं मानता था कि वो बचेंगे।
उसी रात, उनके उच्च अधिकारियों ने उन्हें मेडल ऑफ ऑनर के लिए नामित किया।
अगली सुबह, जनरल कर्टिस लेमे ने साइन कर दिए।
पूरा प्रोसेस कुछ ही घंटों में पूरा हो गया — इतिहास में सबसे तेज़।
क्योंकि वो चाहते थे कि एर्विन को ये सम्मान मरने से पहले मिल जाए।
लेकिन... हेनरी एर्विन नहीं मरे।
एक हफ्ते बाद 19 अप्रैल 1945 को वह एक अस्पताल के बिस्तर पर आंखों पर पट्टी बांधे लेटे थे।
वहीं, चुपचाप, उन्हें मेडल ऑफ ऑनर सौंपा गया।
जिंदा रहने के लिए नहीं,
बल्कि दूसरों को बचाने के लिए।
होनोलूलू में एक डिस्प्ले केस से निकालकर वह इकलौता मेडल लाया गया।
क्योंकि इंतज़ार का वक्त नहीं था।
कुछ घटनाए बस एक ही बार होती हैं।
और हेनरी एर्विन सिर्फ़ एक सैनिक नहीं थे,
वो एक जीती-जागती किंवदंती थे।
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