शोरगुल से भरे क्रिकेट स्टेडियम में जब एक नौजवान तेज गेंदबाज दौड़ता है, तो उसके कदमों की गूंज सिर्फ ज़मीन पर नहीं, एक पूरे मुल्क के दिल में सुनाई देती है। अफ्रीका की धूल भरी ज़मीन पर पैदा हुआ एक लड़का, जिसकी त्वचा तो काली थी पर दिल उम्मीदों से उजला। नाम था हेनरी ओलोंगा।
ज़िम्बाब्वे का वो पहला काला खिलाड़ी, जिसने सिर्फ क्रिकेट ही नहीं खेला, बल्कि अपने देश की राजनीतिक व्यवस्था के खिलाफ आवाज़ भी उठाई। लेकिन इससे पहले कि वो एक 'हीरो' बना, वो एक 'क्रिकेटर' था — और क्या शानदार गेंदबाज़!
हेनरी ओलोंगा का जन्म 3 जुलाई 1976 को ज़ाम्बिया में हुआ था, लेकिन उनका क्रिकेटिंग करियर ज़िम्बाब्वे से जुड़ा। 1995 में उन्होंने श्रीलंका के खिलाफ टेस्ट क्रिकेट में डेब्यू किया, और इसी के साथ वो ज़िम्बाब्वे के लिए खेलने वाले पहले अश्वेत खिलाड़ी बन गए।
उनकी गेंदबाज़ी में रफ्तार थी, स्विंग था और जोश भी बेहिसाब था। वो ऐसे गेंदबाज़ थे जो विरोधी टीम के बल्लेबाजों की आँखों में आँखें डालकर खेलते थे।
1998 में भारत, श्रीलंका और ज़िम्बाब्वे के बीच शारजाह में कोका कोला कप खेला जा रहा था। भारत की टीम मज़बूत थी, उसमें सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली, राहुल द्रविड़, अजय जड़ेजा जैसे दिग्गज थे। लेकिन फिर उस श्रृंखला के एक मैच में, एक ऐसा तूफ़ान तेज़ तूफ़ान आया जिसके सामने पूरी इंडियन बैटिंग लाइनअप ताश के पत्तो की तरह ढह गई। उस तूफ़ान का नाम था हेनरी ओलोंगा।
उस दिन ओलोंगा ने सिर्फ गेंदबाज़ी नहीं की, मानो तूफान छोड़ दिया। ज़िम्बाब्वे ने पहले बैटिंग करते हुए 205 रन बनाया। फिर इस टारगेट को चेस करने के लिए सचिन और गांगुली की जोड़ी मैदान पर आई और उनके सामने थे हेनरी ओलोंगा जिन्होंने उस रोज़ भारत के टॉप ऑर्डर को तहस-नहस कर दिया — तेंदुलकर, गांगुली, द्रविड़ और जड़ेजा जैसे दिग्गज बल्लेबाज़ों को ओलोंगा ने एक-एक कर पवेलियन का रास्ता दिखा दिया।
ओलोंगा ने उस मैच में अपने 8 ओवर में 4 विकेट लिए, और भारत की पूरी टीम 192 रन पर ढेर हो गई। ज़िम्बाब्वे ने ये मैच जीत लिया। ये एक चौंकाने वाला पल था — एक अपेक्षाकृत कमजोर टीम ने क्रिकेट की दिग्गज टीम को धूल चटा दी।
लेकिन क्रिकेट की खूबी ये है कि यहाँ बदला लेने का मौका मिलता है। अगले ही मैच में, सचिन तेंदुलकर ने ओलोंगा को वो सब 'लौटा' दिया जो पिछले मैच में लिया गया था।
सचिन ने 124 रनों की शानदार पारी खेली। लेकिन सबसे खास बात ये थी कि उन्होंने ओलोंगा की गेंदों की जमकर धुनाई की। उनकी रफ्तार, स्विंग, और रणनीति — सब कुछ सचिन की बल्लेबाज़ी के सामने फीकी पड़ गई। ओलोंगा उस दिन 6 ओवर में 50 से ज़्यादा रन लुटा बैठे।
ये मैच सिर्फ क्रिकेट नहीं था — ये एक बदले की कहानी थी। दो प्रतिभाओं की जंग। एक गेंदबाज़ जिसने बला बनकर हमला किया, और एक बल्लेबाज़ जिसने फिर अगली ही शाम उसे करारा जवाब दिया।
क्रिकेट में ओलोंगा का करियर बहुत लंबा नहीं चला। पर वो जो कर गए, वो उन्हें अमर बना गया। 2003 वर्ल्ड कप में, जब ज़िम्बाब्वे की सरकार पर तानाशाही और मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोप लग रहे थे, तब ओलोंगा ने अपने साथी एंडी फ्लावर के साथ मिलकर एक काली पट्टी बाँधी — और दुनिया को संदेश दिया: "Death of Democracy in Zimbabwe" (ज़िम्बाब्वे में लोकतंत्र की मौत)
इस विरोध के बाद उन्हें देश छोड़कर भागना पड़ा। क्रिकेट छूटा, देश छूटा, लेकिन ज़मीर नहीं छोड़ा।
हेनरी ओलोंगा की कहानी सिर्फ एक तेज़ गेंदबाज़ की नहीं है — ये कहानी है हिम्मत की, विद्रोह की, आत्मबल की। जिसने सचिन जैसे महान बल्लेबाज़ को एक दिन घुटनों पर ला दिया, और फिर एक दिन खुद सच्चाई के लिए घुटनों पर बैठ गया, ताकि दुनिया उसे देख सके।
आज ओलोंगा एक गायक हैं, वक्ता हैं, और आज़ादी की मिसाल हैं। और क्रिकेट के इतिहास में उनका नाम सिर्फ गेंदबाज़ी के लिए नहीं, एक साहसी इंसान के तौर पर याद किया जाता है।
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