16 फरवरी 2009 को, चार्ला नैश की ज़िंदगी हमेशा के लिए बदल गई, जब वह स्टैमफोर्ड, कनेक्टिकट में अपनी पुरानी दोस्त सैंड्रा हेरोल्ड से मिलने गईं। सैंड्रा के पास ट्रैविस नाम का 14 साल का चिंपैंजी था, जिसे उसने अपने घर में एक इंसानी बच्चे की तरह पाला था। उस दिन ट्रैविस असामान्य रूप से चिड़चिड़ा था—शायद किसी बीमारी या दवा के कारण। जब चार्ला ने उसे शांत करने की कोशिश की, और उसका पसंदीदा खिलौना टिकल-मी एल्मो दिया, तो हालात अचानक भयावह हो गए। बिना किसी चेतावनी के, ट्रैविस ने हमला कर दिया—चार्ला को ज़मीन पर गिरा दिया और उसके चेहरे और हाथों को बुरी तरह नोच डाला।
हमला इतना भयानक था कि जब आपातकालीन सेवाएँ पहुंचीं, तो उन्हें लगा कि चार्ला मर चुकी है। ट्रैविस ने उसकी नाक, होंठ, पलकों और हाथों को चीर दिया था, और दृश्य इतना भयावह था कि अनुभवी पैरामेडिक्स भी कांप उठे। सैंड्रा ने घबराहट में एक रसोई के चाकू से ट्रैविस को मारा और 911 पर फोन कर मदद की गुहार लगाई, जबकि चिंपैंजी हमला करता रहा। जब पुलिस पहुंची, तो ट्रैविस उन पर झपटा और उसे गोली मार दी गई। चमत्कारी रूप से, चार्ला बच गईं, हालांकि उनकी चोटें अत्यंत गंभीर थीं। उन्हें मेडिकल कोमा में रखा गया और कई जीवनरक्षक सर्जरी की गईं।
इस भीषण आघात के बावजूद, चार्ला नैश दृढ़ता और हिम्मत की मिसाल बन गईं। 2011 में उन्होंने एक ऐतिहासिक फेस ट्रांसप्लांट सर्जरी करवाई। उनके हाथ स्थायी रूप से बहाल नहीं हो सके, लेकिन उन्होंने कुछ हद तक स्वतंत्रता दोबारा हासिल की। चार्ला अब अपनी कहानी लोगों के साथ साझा करती हैं ताकि जंगली जानवरों को पालतू बनाने के ख़तरों को उजागर किया जा सके। उन्हें हमले की ज्यादा यादें नहीं हैं, लेकिन उनके शरीर और आत्मा पर पड़े ज़ख्म अब भी मौजूद हैं। उनकी यात्रा इस सच्चाई की याद दिलाती है कि त्रासदी कितनी तेजी से आ सकती है—और उस भयावह अंधेरे में भी साहस कैसे जन्म ले सकता है।
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