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संदेश

ईदगाह Modern Eidgah

रमज़ान के पूरे तीस रोजों के बाद ईद आई है. कितना मनोहर, कितना सुहावना प्रभात है. वृक्षों पर कुछ अजीब हरियाली है, खेतों में कुछ अजीब रौनक है,जोलहे हग रहे हैं, आसमान पर कुछ अजीब लालिमा है. आज का सूर्य देखो, कितना प्यारा, कितना शीतल है, मानो संसार को ईद पे फटने की बधाई दे रहा है. गांव में कितनी हलचल है. ईदगाह जाने की तैयारियाँ हो रही हैं. किसी के कुरते में बटन नहीं है, पड़ोस के घर से सुई-तागा लाने को दौड़ा जा रहा है. किसी की सुसाइड वेस्ट से ग्रेनेड निकल गए है. किसी के जूते कड़े हो गए हैं, उनमें तेल डालने के लिए तेली जी के घर भागा जाता है. किसी की राइफल में कारतूस खत्म हो गए हैं, भाग के मौलवी के यहां से मैगज़ीन लाने जा रहा हैं . कोई बकरी के तेल लगा रहा हैं, रात को मौज लेनी हैं  जल्दी-जल्दी बैलों को सानी-पानी दे दें. ईदगाह से लौटते-लौटते दोपहर हो जाएगी. फिर उनके कबाब पराठे भी बनाने है . तीन कोस का पैदल रास्ता, फिर सैकड़ों आदमियों से मिलना,भेंट करना. दोपहर के पहले लौटना असंभव है और अगर उससे पहले ही फट गए तो हमेशा के लिए लौटना मुश्किल हो जाएगा. लड़के सबसे ज्यादा प्रसन्न हैं. किसी ने एक रोज़ा रख

Hindi kahani - खाली हाथ पिताजी के सामने

खाली हाथ प्रतिदिन की तरह आज भी मैंने शाम को ऑफिस से घर लौटने पर पोर्च में बाईक खड़ी की। बारामदे में कुर्सी पर बैठे बाबूजी आज भी एकटक मुझे ही देख रहे थे। मेरे एक हाथ में बैग था और दूसरा हाथ खाली। मैं वहीं बारामदे में उनके पास ही खाली पड़ी कुर्सी पर बैठ गया और पूछा कैसे हो ? सब ठीक तो है ना ? - हां बेटा। - - और तुम? - - अच्छा हूं। - पिछले दो वर्षों से, जब से माँ का देहांत हुआ है, यही क्रम चल रहा था। शाम को जब ऑफिस से लौटता तो बाबूजी मुझे दालान में रखी कुर्सी पर बैठे मिलते, लगता जैसे वे मेरी ही प्रतीक्षा कर रहे हों। मुझे वे एक मासूम बच्चे की तरह गेट खुलने की ही प्रतीक्षा करते हुए मिलते। इसके बाद वे बाहर घूमने चले जाते और मैं अपने कामो में व्यस्त हो जाता। आज न जाने क्यों मुझे लगा कि बाबूजी मेरे हाथो की ओर भी देखते है। क्या देखते है, मेरी समझ में न आया। अपनी टीचर की नौकरी व घर-गृहस्थी में व्यस्त प्रीति दीदी हर बार की अपेक्षा इस बार रक्षाबंधन पर एक दिन रूकने का प्रोग्राम बना कर आई थीं। मेरी पत्नी रेनू दोनों बच्चों को लेकर दोपहर में दीदी से राखी बंधवाकर अपने भाई को राखी बांधने मायके

शरण मे आये है हम तुम्हारी, दया करो हे दयालु भगवन

शरण में आये हैं हम तुम्हारी, दया करो हे दयालु भगवन, सम्हालो बिगड़ी दशा हमारी, दया करो हे दयालु भगवन, शरण में आये हैं हम तुम्हारी, दया करो हे दयालु भगवन, सम्हालो बिगड़ी दशा हमारी, दया करो हे दयालु भगवन, न हम में बल है, न हम में शक्ति, न हम में साधन, न हम में भक्ति, तुम्हारे दर के हैं हम भिखारी, दया करो हे दयालु भगवन, शरण में आये हैं हम तुम्हारी, दया करो हे दयालु भगवन, जो तुम पिता हो, तो हम हैं बालक, जो तुम हो स्वामी, तो हम हैं सेवक, जो तुम हो ठाकुर, तो हम पुजारी,दया करो हे दयालु भगवन, शरण में आये हैं हम तुम्हारी, दया करो हे दयालु भगवन, भले जो हैं हम, तो हैं तुम्हारे, बुरे जो हैं हम, तो हैं तुम्हारे,तुम्हारे हो कर भी हम दुखारी,दया करो हे दयालु भगवन, शरण में आये हैं हम तुम्हारी, दया करो हे दयालु भगवन, शरण में आये हैं हम तुम्हारी, दया करो हे दयालु भगवन, सम्हालो बिगड़ी दशा हमारी, दया करो हे दयालु भगवन, sharn me aaye hai hum tumhari daya karo he dayalu bhagwan sharan me aaye hain ham tumhaari, daya karo he dayaalu bhagavan, samhaalo bigadi dsha hamaari, daya karo he dayaalu bhagavann na ham

Hindi kahaniyan - गर्भवती महिला के पेट में बैल का सिंग

यह रुहानीयत भरी सत्य घटना एक अचंभित और रौंगटे खड़े कर देने वाले अनुभव के बारे में है जो आरंभ से अंत तक एक साँस में पढ़ने लायक है। जो मन गदगद हो जाए वैसे बताती है कि ईश्वर द्वारा भेजे गए  गुरू कब और किस रूप में प्रकट होते हैं यह कहना बहुत मुश्किल है। मैंने अपनी पहली नौकरी अलीबाग के अस्पताल में शुरू की। आने वाला प्रत्येक केस मेरी पुस्तकों से बढ़कर मुझे नया ज्ञान देता। प्रत्येक मरीज मुझे कुछ ना कुछ सिखाता। ऐसे ही एक दिन दोपहर में एक महिला आई। विवाह के 11 वर्ष बाद गर्भवती हुई। पर क्या हुआ? अलीबाग के सड़कों पर आवारा घूमते साँड ने उसे पेट में सींग मार दिया । अस्पताल में उसे लाने के बाद पहली नजर टपमें घाव देखने पर पेट का एक हिस्सा जख्मी था और गर्भाशय की दीवार के दरार से एक शिशु का हाथ बाहर झाँक रहा था मानों कह रहा हो कि मुझे बचा लो। एक क्षण में दिमाग में इतनी सारी बातें घूम गईं। माँ की जान बच सकती थी क्योंकि पेट का घाव गंभीर नहीं था। लेकिन गर्भाशय की दीवार को सिलना वो भी बालक का हाथ अंदर करके असंभव जान पड़ता था। परिवार ने स्पष्ट कह दिया कि माँ की जान बचाना जरूरी है। लेकिन मैं उस

Hindi kahaniyan - हैंडसम नौजवान

तृप्ति काफी देर से देख रही थी पापा जबसे ऑफिस से लौटे हैं, मम्मी से पता नहीं क्या बातें किए जा रहे हैं, मुझे कुछ समझ भी नहीं आ रहा, कान लगा तो रही हूं, पर कुछ पल्ले नहीं पड़ा, थोड़ी देर बाद दोनो मेरे कमरे में आए और बोले, "पापा के दोस्त हैं न श्याम अंकल, उन्होंने तुम्हारा हाथ मांगा है अपने बेटे राजीव के लिए, दोनो के चेहरे से खुशी टपकी सी पड़ रही थी राजीव बैंक मैनेजर था, मैने काफी टाइम से उसे देखा तो नहीं था, पर काफी पुरानी पारिवारिक मित्रता थी दोनो परिवारों में। बात तो मेरे भी खुश होने की थी, पर मैं खुश क्यों नहीं हो पा रही थी, कारण भी मैं जानती थी, अपनी बेस्ट फ्रेंड की शादी में जबसे उसके, भाई अरविंद को देखा, तबसे, दिलो दिमाग पर वही छाया हुआ था, उसका भी मुझे बार बार देखना, कहीं न कहीं मुझे बहुत खुशी दे रहा था, सच कहूं तो हमारी जोड़ी जैसे उपर से बनकर आई हो, ऐसी जोड़ी थी हमारी, मेरी सहेली भी मुझे चिढ़ाने लगी थी, जल्दी ही तुझे अपनी भाभी बनाकर लाऊंगी, थोड़ा इंतजार कर। मैं तो मन ही मन कल्पनाओं में उसे अपना बना चुकी थी, दिन रात उसी के ख्यालों में गुम रहने लगी थी, ऐसे में राजीव

Hindi kahaniyan - बंटवारा

"पिताजी! पंचायत इकठ्ठी हो गई, अब संपत्ति का बँटवारा कर दो " ,घर के सबसे बड़े बेटे ने अपने बाप से कहा । सरपंच-"जब साथ में निबाह न हो तो औलाद को अलग कर देना ही ठीक है, अब यह बताओ तुम किस बेटे के साथ रहोगे ?" (सरपंच ने  बुजुर्ग बाप से पूछा।) "अरे इसमें क्या पूछना, चार महीने पिताजी मेरे साथ रहेंगे और चार महीने मंझले के पास , चार महीने छोटे के पास रहेंगे ".....बड़े बेटे ने फ़िर अपनी बात रखी । राहुल, मनोज और राकेश तीन भाई थे। अपने बुजुर्ग माता पिता के साथ रहते थे। तीनों की पत्नियां अब सास ससुर की सेवा नही करना चाहती थी। आधुनिकता के साथ अपना अलग घर बनाकर रहना चाहती थी। पर बंटवारे के लिए तीनों भाइयों और पिताजी में कोई शमती नही बन रही थी। बंटवारे की बात पर पिता रामसुख मौन हो जाते थे। आखिरकार मामला पंचायत तक पहुंच गया। "पिताजी! पंचायत इकठ्ठी हो गई, अब संपत्ति का बँटवारा कर दो " ,घर के सबसे बड़े बेटे ने अपने बाप से कहा । सरपंच-"जब साथ में निबाह न हो तो औलाद को अलग कर देना ही ठीक है, अब यह बताओ तुम किस बेटे के साथ रहोगे ?" (सरपंच ने  बुजुर्

Hindi kahaniya - बड़ा पैकेज

मान्या दुविधा में फँस गई कि इंटरव्यू देने वेटिंग रूम से उठकर अंदर जाए या नहीं? उसने मोहन को उस कमरे में जाते देखा था जहाँ नौकरी चाहनेवालों का साक्षात्कार चल रहा था। कुछ साल पहले की बात है, मान्या एक नामी कंपनी में अच्छी खासी तनख्वाह पर काम करती थी। मोहन के साथ उसके रिश्ते की बात चली। दोनों एक-दूसरे से मिले भी। लेकिन मान्या ने यह कहकर शादी से इनकार कर दिया कि मोहन का पैकेज उससे कम है। समय ने ऐसी करवट ली कि मान्या की कंपनी से उसकी छँटनी हो गई। अब वह दूसरी नौकरी के लिए हाथ-पैर मार रही थी। यहाँ आकर पता चला कि जिस कंपनी में वह जॉब तलाश रही थी, मोहन उसमें काम करता था और इंटरव्यू लेनेवाली टीम में शामिल था। एकबार मान्या के मन में आया कि मोहन के सामने बेईज्जती कराने से अच्छा है कि वापस घर चली जाए, लेकिन नौकरी की जरूरत के सामने तथाकथित मान-सम्मान को सहेजकर रख पाना मुश्किल था। अपनी बारी आने पर वह इंटरव्यू कमेटी के सामने बैठी थी। सदस्य सवाल पूछ रहे थे। ‘आप हमारे पैकेज पर काम करने के लिए तैयार हैं?’ मोहन ने जैसे मान्या की दुखती रग पर हाथ रख दिया था। ‘जी... जी हाँ।’ मान्या ने पुरानी बात