यह रुहानीयत भरी सत्य घटना एक अचंभित और रौंगटे खड़े कर देने वाले अनुभव के बारे में है जो आरंभ से अंत तक एक साँस में पढ़ने लायक है।
जो मन गदगद हो जाए वैसे बताती है कि ईश्वर द्वारा भेजे गए गुरू कब और किस रूप में प्रकट होते हैं यह कहना बहुत मुश्किल है।
मैंने अपनी पहली नौकरी अलीबाग के अस्पताल में शुरू की। आने वाला प्रत्येक केस मेरी पुस्तकों से बढ़कर मुझे नया ज्ञान देता। प्रत्येक मरीज मुझे कुछ ना कुछ सिखाता।
ऐसे ही एक दिन दोपहर में एक महिला आई।
विवाह के 11 वर्ष बाद गर्भवती हुई। पर क्या हुआ?
अलीबाग के सड़कों पर आवारा घूमते साँड ने उसे पेट में सींग मार दिया ।
अस्पताल में उसे लाने के बाद पहली नजर टपमें घाव देखने पर पेट का एक हिस्सा जख्मी था और गर्भाशय की दीवार के दरार से एक शिशु का हाथ बाहर झाँक रहा था मानों कह रहा हो कि मुझे बचा लो।
एक क्षण में दिमाग में इतनी सारी बातें घूम गईं। माँ की जान बच सकती थी क्योंकि पेट का घाव गंभीर नहीं था। लेकिन गर्भाशय की दीवार को सिलना वो भी बालक का हाथ अंदर करके असंभव जान पड़ता था। परिवार ने स्पष्ट कह दिया कि माँ की जान बचाना जरूरी है।
लेकिन मैं उस नन्हें हाथ की पुकार को कैसे अनदेखा करता।?
ऑपरेशन थियेटर में मेरे अलावा गिना चुना स्टाफ था। दो नर्स, एक कंपाउंडर और एक हेल्पर जिसका काम औजार उबालकर देना था। वह थोड़ा अधेड़ था और हर समय पीनक में रहता था पर काम सही करता और पूरे समय अस्पताल में ही रहता था इसलिये उसे सब सहन करते थे।
वह भी OT में चुपचाप पीछे खड़ा होकर सब देख रहा था। मेरी दिमागी कशमकश वो समझ रहा था। पेट के घाव का उपचार करने के बाद मैं उस नन्हें हाथ को अंदर कैसे करूँ ये किताबी ज्ञान से परे था। कोई प्रत्युत्पन्नमति ही काम कर सकती थी।
गर्भाशय की दीवार सृष्टिकर्ता ने सोचसमझ कर इतनी मजबूत बनाई है कि आसानी से खोली नहीं जा सकती और यदि चीर कर खोल भी दी तो सतमासे बालक का जन्म और जीवित रहने की प्रत्याशा जबकि माँ का ही होश में आना मुश्किल लग रहा था, कैसे, क्या करूँ ?
मेरा दिमाग जवाब दे चुका था कि आँपरेशन के अलावा कोई दूसरा उपाय उस हाथ को अंदर करने का नहीं है।
तभी वो हेल्पर जो चुपचाप सब देख रहा था अचानक मेरे पास आकर कान में फुसफुसाया, " साहेब एक तरीका है जिससे हाथ अपने आप अंदर चला जायेगा।
मैंने उसे घूरकर देखा। एक एक क्षण कीमती था। पता नहीं ये पीनक में क्या बोल रहा है पर जैसे अंतरात्मा की आवाज पर मैंने उससे कहा जल्दी बता क्या हो सकता है।
वो बोला इंजेक्शन की सुई गरम करके हाथ को टोचा लगाओ वो तुरंत पीछे जायेगा। मैं मजबूर था उसकी बात मानने को। मैंने मन ही मन ईश्वर को याद किया और उस नन्हीं सी जान से सौ सौ माफी मांगकर हिम्मत जुटाई व सुई गरम कर उसे हलकी सी चुभा दी।
चमत्कार हुआ और एकदम वो हाथ झटके से पीछे होकर अंदर चला गया।
आगे का काम आसान था तुरंत गर्भाशय की दीवार की ड्रेसिंग करके पट्टा चढ़ा दिया।
भगवान पर भरोसा रखकर दो माह इसी उम्मीद में निकले कि अंदर बच्चा सुरक्षित होगा और ऊपर वाले ने भी निराश नहीं किया।
दो माह बाद उसी अस्पताल में महिला की सुरक्षित डिलीवरी हुई और वो नन्हा शिशु मेरे ही हाथों में सही सलामत मुस्कुरा रहा था। मैं उस हेल्पर को अपना गुरू मान चुका था।
उसका नाम अब बताता हूँ ..सांडे था।
बाद में ये कहावत बन गई कि “सांड ने मारा और सांडे ने तारा।”
मेरे मन में यह विश्वास अडिग हो गया कि किताबों में पढ़कर इलाज नहीं होता कभी कभी ईश्वर किसी भी रूप में गुरू बनकर राह दिखा देता है जैसे मुझे सांडे ने दिखाई। उसकी युक्ति किसी मेडीकल बुक में नहीं मिलेगी।
अंत में यही कहूंगा कि ' ही तर श्रीं जी इच्छा
स्त्रोत - जनरल सर्जन डोक्टर सुभाष मुंजे MS की पुस्तक "बिहाइंड द मास्क" से #साभार अनुवाद किया गया अंश है।
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