सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

Hindi kahani - खाली हाथ पिताजी के सामने

खाली हाथ

प्रतिदिन की तरह आज भी मैंने शाम को ऑफिस से घर लौटने पर पोर्च में बाईक खड़ी की। बारामदे में कुर्सी पर बैठे बाबूजी आज भी एकटक मुझे ही देख रहे थे। मेरे एक हाथ में बैग था और दूसरा हाथ खाली।



मैं वहीं बारामदे में उनके पास ही खाली पड़ी कुर्सी पर बैठ गया और पूछा कैसे हो ? सब ठीक तो है ना ?

- हां बेटा। -

- और तुम? -

- अच्छा हूं। -

पिछले दो वर्षों से, जब से माँ का देहांत हुआ है, यही क्रम चल रहा था।

शाम को जब ऑफिस से लौटता तो बाबूजी मुझे दालान में रखी कुर्सी पर बैठे मिलते, लगता जैसे वे मेरी ही प्रतीक्षा कर रहे हों। मुझे वे एक मासूम बच्चे की तरह गेट खुलने की ही प्रतीक्षा करते हुए मिलते। इसके बाद वे बाहर घूमने चले जाते और मैं अपने कामो में व्यस्त हो जाता।

आज न जाने क्यों मुझे लगा कि बाबूजी मेरे हाथो की ओर भी देखते है। क्या देखते है, मेरी समझ में न आया।

अपनी टीचर की नौकरी व घर-गृहस्थी में व्यस्त प्रीति दीदी हर बार की अपेक्षा इस बार रक्षाबंधन पर एक दिन रूकने का प्रोग्राम बना कर आई थीं।

मेरी पत्नी रेनू दोनों बच्चों को लेकर दोपहर में दीदी से राखी बंधवाकर अपने भाई को राखी बांधने मायके चली गयी। घर पर बस बाबूजी, मैं और दीदी ही थे। बाबूजी तो रात में खाना खा कर जल्दी सो गये थे। मै और जीजी बिस्तरों में बैठ कर देर रात तक बातें करते रहे।

दीदी बताने लगी कि कैसे जब बाबूजी शाम को डयूटी से वापस आते थे तो हम लोगों के खाने के लिए रोज कुछ न कुछ जरूर लाते थे। हम दरवाजे पर बैठकर उनका बेसब्री से इंतजार करते थे। घर में आते ही उनके हाथों को ललचाई नजरों से देखते हुये उनके पैरों से लिपट जाया करते थे। कभी-कभी बाबूजी खाने की चीज अपने बैग में छिपा लेते थे तो हम मायूस हो मूंह लटका कर बैठ जाते। मुस्कुराते हुए बाबूजी जब बैग में से खाने की चीज निकालते तो हमारे चेहरे खिल उठते थे।

तब समय एवं परिस्थिती के हिसाब से उस बैग में रोज कुछ न कुछ नया होता हम बच्चो के खाने के लिए। फिर माँ हम दोनों भाई बहनो को बराबर में बिठाकर बड़े प्यार से खिलाती, कुछ बचता तो माँ बाबूजी भी खाते वरना हम बच्चो के खिले चेहरे और मन देखकर ही वे दोनों तृप्त हो जाते थे।

कभी किसी वजह से बाबूजी को आने में देर हो जाती या उनके हाथ खाली हो तो लगता जैसे पूरा घर उदास हो गया हो।

दीदी दो साल ही तो बड़ी थीं। दीदी बता रहीं थीं और मेरे मस्तिष्क में बाबूजी का खाली हाथो में कुछ ढूंढना कौंध गया।

अगले ही क्षण मेरी आँखों से झर झर आंसू बहने लगे, मन हुआ कि फूट-फूट कर रो लूं।

माँ के चले जाने के बाद घर में विशेष कुछ बनता न था। पत्नी रेनू के कामकाजी होने के कारण उसे किचन में जाने का समय कम ही मिल पाता था। इसलिए मेरी शादी के बाद भी माँ जब तक रही,ं तब तक बाबूजी और हमें खाने पीने की विशेष चीजों की कमी न रही।

हे भगवान, मुझसे इतना बड़ा अपराध कैसे हो सकता है। क्यों मै यह भूल गया कि बच्चे बूढ़े एक समान होते है। पिछले वर्षो की व्यस्तताओं ने मुझे और रेनू को बच्चो एवं बुढो की छोटी मोटी इच्छाओ के बारे में कुछ सोचने का मौका ही न दिया।

वैसे तो अब घर में खाने पीने के लिए सब आसानी से उपलब्ध होता है, फिर भी बच्चो के साथ साथ बुजुर्गो को भी लगता है कि कोई बाहर से आता है तो कुछ न कुछ खाने के लिए विशेष मिलेगा ही मिलेगा।

मैनें यह बात दीदी को बताई तो मेरे साथ उनके भी आंसू बहने

लगे।

मन ही मन मैंने कुछ प्रण कर लिया था।

दूसरे दिन जब मैं ऑफिस से लौटा तो आज भी बाबूजी यथावत उसी जगह व उसी मुद्रा में बैठे मिले।

मैं गाड़ी की डिग्गी में से एक हाथ से बैग और दूसरे हाथ से गरम जलेबी का लिफाफा निकालकर बाबूजी की ओर बढ़ गया।

बैग के अलावा दूसरे हाथ में लिफाफा देखकर बाबूजी की आंखों में चमक आ गई।

लिफाफा उनके हाथ में देकर मैं उनके बाजू में रखी कुर्सी पर बैठ गया। उन्होंने उत्सुकता से लिफाफा खोला और जलेबी देख कर बालसुलभ मुस्कुराहट उनके चेहरे पर फैल गई

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

तृप्ति डिमरी की जीवनी - Tripti dimri ki jivni in Hindi

तृप्ति डिमरी ने अपने फिल्मी करियर में अपनी पहचान बनाने के लिए कई संघर्ष किए हैं। उनकी खासियत है कि वे प्रामाणिक और भावनात्मक रूप से गहरी भूमिकाओं को प्राथमिकता देती हैं। यहां उनकी जीवनी के कुछ और पहलू दिए गए हैं। प्रारंभिक जीवन तृप्ति का जन्म 23 फरवरी 1994 को हुआ। उनका परिवार उत्तराखंड से है, लेकिन उनका पालन-पोषण दिल्ली में हुआ। बचपन से ही उन्हें अभिनय और कला के प्रति रुचि थी। वे न केवल पढ़ाई में बल्कि सह-पाठयक्रम गतिविधियों में भी सक्रिय थीं। करियर की शुरुआत पोस्टर बॉयज (2017): इस फिल्म में तृप्ति का किरदार छोटा था, लेकिन उन्होंने अपने अभिनय कौशल से ध्यान आकर्षित किया। लैला मजनू (2018): इम्तियाज अली द्वारा प्रस्तुत इस फिल्म में तृप्ति ने लैला का किरदार निभाया। उनकी मासूमियत और गहराई से भरी अदाकारी ने दर्शकों का दिल जीत लिया। बुलबुल (2020): नेटफ्लिक्स की इस फिल्म ने तृप्ति के करियर को नई ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया। इसमें उन्होंने एक रहस्यमय और सशक्त महिला का किरदार निभाया। प्रसिद्धि और प्रशंसा तृप्ति को उनकी फिल्मों के लिए कई पुरस्कार और सम्मान मिले हैं। फिल्मफेयर ...

रश्मिरथी - वर्षों तक वन में घूम-घूम कविता - रामधारी सिंह दिनकर

वर्षों तक वन में घूम-घूम, बाधा-विघ्नों को चूम-चूम,   सह धूप-घाम, पानी-पत्थर, पांडव आये कुछ और निखर। सौभाग्य न सब दिन सोता है, देखें, आगे क्या होता है। मैत्री की राह बताने को, सबको सुमार्ग पर लाने को, दुर्योधन को समझाने को, भीषण विध्वंस बचाने को, भगवान् हस्तिनापुर आये, पांडव का संदेशा लाये। 'दो न्याय अगर तो आधा दो, पर, इसमें भी यदि बाधा हो, तो दे दो केवल पाँच ग्राम, रक्खो अपनी धरती तमाम। हम वहीं खुशी से खायेंगे, परिजन पर असि न उठायेंगे! दुर्योधन वह भी दे ना सका, आशिष समाज की ले न सका, उलटे, हरि को बाँधने चला, जो था असाध्य, साधने चला। जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है। हरि ने भीषण हुंकार किया, अपना स्वरूप-विस्तार किया, डगमग-डगमग दिग्गज डोले, भगवान् कुपित होकर बोले- 'जंजीर बढ़ा कर साध मुझे, हाँ, हाँ दुर्योधन! बाँध मुझे। यह देख, गगन मुझमें लय है, यह देख, पवन मुझमें लय है, मुझमें विलीन झंकार सकल, मुझमें लय है संसार सकल। अमरत्व फूलता है मुझमें, संहार झूलता है मुझमें। 'उदयाचल मेरा दीप्त भाल, भूमंडल वक्षस्थल विशाल, भुज परिधि-बन्ध को घेरे हैं, मैनाक-मेरु पग मेरे हैं। दिप...

इस होली बस इतना..."मलाल " रह गया...!!! तेरे गाल रह गये कोरे, मेरे हाथों मे गुलाल रह गया…!!! - funny jokes & One liners in hindi #2

  funny jokes & One liners: -  कल शाम को सोचा था, 2 पेग मार के 10 बजे तक घर पहुँच जाऊंगा ये पेग और टाइम कब आपस में बदल गए.. पता ही नहीं चला funny jokes & One liners: -  इस होली बस इतना..."मलाल " रह गया...!!! तेरे गाल रह गये कोरे मेरे हाथों मे गुलाल रह गया…!!!   funny jokes & One liners: -  तू हँस, तू मुस्कुरा और रोना कम कर दे जिंदा हैं तू, जिन्दगी की नाक में दम कर दे। Hindipie.blogspot.com   funny jokes & One liners: -  मेरा एक दोस्त मुझे मैथ्स का खुदा मानता है...... क्योंकि 🤘🏻. एक बार मैने उसे इस तरह समझाया था🤓. एक बार मैने उससे पूछा 2/3 और 3/2 में कौन संख्या अधिक है. वह उत्तर नहीं दे सका.😟. फिर मैंने पूछा दो बोतल में तीन आदमी या तीन बोतल में दो आदमी... किसमें ज्यादा मिलेगा.🤔. उसने सही सही जवाब दे दिया.🍷.😄🤭   funny jokes & One liners: -  मोहल्ले में एक दो भाभी  ऐसी जरूर होती है जो "सबका साथ सबका विकास " पर पूरा ध्यान रखती है 😂😂😂😂😂😂😂  Hindipie.blogspot.com funny jokes & One liners: -  शुक्...