रमज़ान के पूरे तीस रोजों के बाद ईद आई है. कितना मनोहर, कितना सुहावना प्रभात है. वृक्षों पर कुछ अजीब हरियाली है, खेतों में कुछ अजीब रौनक है,जोलहे हग रहे हैं, आसमान पर कुछ अजीब लालिमा है. आज का सूर्य देखो, कितना प्यारा, कितना शीतल है, मानो संसार को ईद पे फटने की बधाई दे रहा है. गांव में कितनी हलचल है. ईदगाह जाने की तैयारियाँ हो रही हैं. किसी के कुरते में बटन नहीं है, पड़ोस के घर से सुई-तागा लाने को दौड़ा जा रहा है. किसी की सुसाइड वेस्ट से ग्रेनेड निकल गए है. किसी के जूते कड़े हो गए हैं, उनमें तेल डालने के लिए तेली जी के घर भागा जाता है. किसी की राइफल में कारतूस खत्म हो गए हैं, भाग के मौलवी के यहां से मैगज़ीन लाने जा रहा हैं . कोई बकरी के तेल लगा रहा हैं, रात को मौज लेनी हैं जल्दी-जल्दी बैलों को सानी-पानी दे दें. ईदगाह से लौटते-लौटते दोपहर हो जाएगी. फिर उनके कबाब पराठे भी बनाने है . तीन कोस का पैदल रास्ता, फिर सैकड़ों आदमियों से मिलना,भेंट करना. दोपहर के पहले लौटना असंभव है और अगर उससे पहले ही फट गए तो हमेशा के लिए लौटना मुश्किल हो जाएगा. लड़के सबसे ज्यादा प्रसन्न हैं. किसी ने एक रोज़ा रख
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