अगर आप कबीरदास जी और रहीम जी के दोहों की तलाश कर रहे हो तो आप बिलकूल सही जगह पर आये है , यहाँ पर आपको कबीर दास जी और रहीम दास जी के लगभग सभी प्रसिद्द दोहे यहाँ पर उपलब्ध हो जायेंगे, आप भी याद करे और बच्चों को भी सुनाये, अगर आपको ये सब अच्छे लगे तो आगे शेयर भी जरूर करे .... धन्यवाद
रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून ।
पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून ॥
पावस देखि रहीम मन, कोइल साधे मौन ।
अब दादुर वक्ता भए, हमको पूछे कौन ||
समय पाय फल होत है, समय पाय झरी जात ।
सदा रहे नहिं एक सी, का रहीम पछितात ||
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय ||
दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त ।
अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत ||
साधू भूखा भाव का, धन का भूखा नाहिं ।
धन का भूखा जी फिरैं, सो तो साधू नाहिं ||
अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप ।
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप ॥
माया मुई न मन मुआ, मरी मरी गया सरीर ।
आसा त्रिसना न मुई, यों कही गए दास कबीर ||
बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय ।
रहिमन फाटै दूध ते, मथे न माखन होय ||
ऐसी बानी बोलिये, मन का आपा खोय ।
औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय ||
कथनी थोथी जगत् में, करनी उत्तम सार |
कह कबीर करनी सबल, उतरै भव जल पार ||
करे बुराई सुख चहै, कैसे पावे कोय।
रोपे बिरवा आक का, आम कहाँ ते होय ||
माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर ।
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर ॥
जाति न पूछो साधु की, पूछि लीजिए ज्ञान ।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान ||
मन लोभी मन लालची, मन चंचल मन चोर ।
मन के मते न चालिए, पलक पलक मन ओर ||
कबीरा ये जग कुछ नहीं, खिन खारा खिन मीठ ।
कालही जो बैठ्या मंडप में, आज मशाने दीठ ॥
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय ।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय ॥
बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि ||
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर |
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर ||
बड़े बड़ाई ना करे, बड़े ना बोले बोल।
रहिमन हीरा कब कहै, लाख हमारो मोल ||
तुलसी मीठे वचन ते, सुख उपजत चहुँ ओर।
वशीकरण इक मंत्र है, तजिए वचन कठोर ॥
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय ।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय ||
साँई इतना दीजिए, जामें कुटुंब समाय ।
मैं भी भूखा ना रहूँ, साधु न भुखा जाय ॥
तुलसी इस संसार में, भाँति-भाँति के लोग ।
सबसौं हिल-मिल चालिए, नदी-नाव संजोग ||
साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।
जांके हिरदे सांच है, ताके हिरदे आप ||
सरस्वती के भंडार की बड़ी अपूरब बात ।
ज्यों खरचे त्यों-त्यों बढ़े, बिन खरचे घट जात ॥
गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागूं पाँय।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो मिलाय ||
लाली मेरे लाल की, जित देखौं तित लाल ।
लाली देखन मैं गई, मैं भी हो गई लाल ||
दीन सबन को लखत है, दीनहिं लखै न कोय ।
जो रहीम दीनहिं लखै, दीन-बंधु सम होय ||
समय समय का मोल है, समय समय की बात।
कोई समय का दिन बड़ा, कोई समय की रात ॥
रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि ।
जहाँ काम आवै सुई, क्या करै तलवारि ॥
सतगुरु ऐसा चाहिए, जैसे लोटा डोर ।
गला फँसावे आपनौ, लावै नीर झकोर ॥
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिए कोय ।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय ॥
रैन गवाँई सोय के, दिवसु गँवाइया खाय ।
हीरा जनम अमोल था, कौड़ी बदले जाय ||
गुरु कुम्हार सिष कुंभ है, गढ़ि-गढ़ि काढ़े खोट ।
अंतर हाथ सँभारि दे, बाहर बाहे चोट ||
जो पहले कीजै जतन, सो पीछे फलदाय ।
आग लगै खोदे कुआँ, कैसे आग बुझाय ॥
कारज धीरे होत है, काहे होत अधीर ।
समय पाय तरूवर फले, के तक सींचो नीर ॥
मधुर वचन से जात मिटे, उताम जन अभिमान ।
तनिक सीत जल सौं मिटै, जैसे दूध उफान ||
समय बड़ा अनमोल है, मत कर यूँ बरबाद ।
कुछ तो ऐसा काम कर, लोग करें तुझे याद ॥
कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर ।
ना काहू से दोस्ती, न काहू से बैर ||
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