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हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय | Hindustan tan man Hindu jivan rag rag Hindu Mera parichay lyrics in hindi

हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!


मैं अखिल विश्व का गुरु महान्, देता विद्या का अमरदान।

मैंने दिखलाया मुक्ति-मार्ग, मैंने सिखलाया ब्रह्मज्ञान।

मेरे वेदों का ज्ञान अमर, मेरे वेदों की ज्योति प्रखर।

मानव के मन का अंधकार, क्या कभी सामने सका ठहर?

मेरा स्वर नभ में घहर-घहर, सागर के जल में छहर-छहर।

इस कोने से उस कोने तक, कर सकता जगती सौरभमय।

हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!


मैं तेज पुंज, तमलीन जगत में फैलाया मैंने प्रकाश।

जगती का रच करके विनाश, कब चाहा है निज का विकास?

शरणागत की रक्षा की है, मैंने अपना जीवन दे कर।

विश्वास नहीं यदि आता तो साक्षी है यह इतिहास अमर।

यदि आज देहली के खण्डहर, सदियों की निद्रा से जगकर।

गुंजार उठे उंचे स्वर से ‘हिन्दू की जय’ तो क्या विस्मय?

हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!


दुनिया के वीराने पथ पर जब-जब नर ने खाई ठोकर।

दो आंसू शेष बचा पाया जब-जब मानव सब कुछ खोकर।

मैं आया तभी द्रवित हो कर, मैं आया ज्ञानदीप ले कर।

भूला-भटका मानव पथ पर ‍चल निकला सोते से जग कर।

पथ के आवर्तों से थक कर, जो बैठ गया आधे पथ पर।

उस नर को राह दिखाना ही मेरा सदैव का दृढ़ निश्चय।

हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!


मैंने छाती का लहू पिला पाले विदेश के क्षुधित लाल।

मुझ को मानव में भेद नहीं, मेरा अंतस्थल वर विशाल।

जग के ठुकराए लोगों को, लो मेरे घर का खुला द्वार।

अपना सब कुछ लुटा चुका, फिर भी अक्षय है धनागार।

मेरा हीरा पाकर ज्योतित परकीयों का वह राजमुकुट।

यदि इन चरणों पर झुक जाए कल वह किरीट तो क्या विस्मय?

हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!


मैं ‍वीर पुत्र, मेरी जननी के जगती में जौहर अपार।

अकबर के पुत्रों से पूछो, क्या याद उन्हें मीना बाजार?


क्या याद उन्हें चित्तौड़ दुर्ग में जलने वाला आग प्रखर?

जब हाय सहस्रों माताएं, तिल-तिल जलकर हो गईं अमर।


वह बुझने वाली आग नहीं, रग-रग में उसे समाए हूं।

यदि कभी अचानक फूट पड़े विप्लव लेकर तो क्या विस्मय?

हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!


होकर स्वतंत्र मैंने कब चाहा है कर लूं जग को गुलाम?

मैंने तो सदा सिखाया करना अपने मन को गुलाम।

गोपाल-राम के नामों पर कब मैंने अत्याचार किए?

कब दुनिया को हिन्दू करने घर-घर में नरसंहार किए?


कब बतलाए काबुल में जा कर कितनी मस्जिद तोड़ीं?

भूभाग नहीं, शत-शत मानव के हृदय जीतने का निश्चय।

हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!


-अटल बिहारी वाजपेयी

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