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Hindi kahaniyan - ये मरद जात तो होवे ही ऐसी

Hindi kahaniyan - बरेली शहर में एक पुरानी हवेली जिसमें हमारा क़रीब 20–21 सदस्यों का संयुक्त परिवार रहता था .

जिसमें 1 से 10 साल के कुल 12 बच्चे थे .

अंदर पक्की ईंटों का आँगन था और हवेली के बाहर चारों तरफ से ऊंची दीवार से घिरे छोटे से खुले मैदान में एक बरगद का वृक्ष था.

घरेलू चिड़ियाँ जैसे गौरैया , मैना, कबूतर और कौए हवेली में निर्भय विचरण करते रहते थे .

उन दिनों पक्षियों के साथ इंसानों का समन्वय आज से कई गुना बेहतर था.

घरों में पक्षियों के लिए मिट्टी के बर्तन में पानी रखना सामान्य दृश्य था .

गौरैया का हवेली में यहाँ वहाँ यहाँ तक कि ड्राइंग रूम में घोंसला बना लेना आम बात थी.

पक्षी हमारे घरों में पूरे हक़ से घूमते फिरते रहते थे ,निर्भय और बेफिक्र …




एक दिन की बात है , मेरी दादी के कमरे की छत में लकड़ी की कड़ियों के बीच छोटी सी जगह में एक नर-मादा गौरैया के जोड़े ने अपना घोंसला बना लिया .

दादी ने उस घोंसले पर ध्यान जाते ही तुरंत घोंसला हटाने की आज्ञा दी .

जैसे ही हमारा नौकर टेबल के ऊपर टेबल रख कर घोंसले तक पहुँचा उसे गौरैया के नन्हें बच्चों की चहचहाने की बारीक आवाज़ सुनाई दी.

दादी ने उसे तुरंत नीचे आने को कहा . जब तक बच्चे उड़ नहीं जाते . घोंसले को हाथ मत लगाना !!!

दादी ने फरमान जारी कर दिया…

फिर तो वह घोंसला घर के सभी बच्चों के आकर्षण का केंद्र बन गया… दिन भर सबकी निगाहें वहीं रहतीं .

बारी बारी से नर और मादा चिड़िया अपने नन्हें चूज़ों के लिए खाने को लाते और सुबह से शाम तक अनवरत यही प्रक्रिया चलती रहती थी.

लेकिन एक दिन अचानक एक दुर्घटना हो गई.

सुबह सुबह की बात है

मादा गौरैया कमरे में रोज़ की तरह दाखिल होते ही चलते हुए पंखे से टकरा गई और छिटक कर कोने में जा गिरी .

दादी उसी कमरे में आराम कर रही थीं

ज़ोर से चिल्लाईं - अरे कोई जल्दी आओ रे …

हम सब बच्चे और बड़े कमरे की तरफ भागे

नन्हीं गौरैया बुरी तरह घायल थी और चोंच खोलकर कराह रही थी .

हमने उसकी चोंच में पानी की बून्दें डालकर उसे बचाने का प्रयास किया , लेकिन नन्हीं गौरैया ने कुछ ही पलों में दम तोड़ दिया.

हमारे सारे परिवार में उदासी छा गई .


दूसरी तरफ नर (चिड़े) का कोई अता पता न था.

उधर घोंसले में बच्चों ने भूख के मारे चीं चीं करके आसमान सर पे उठा लिया .

एक बार सोचा गया कि नन्हें बच्चों को घोंसले से उतारकर कुछ दाना पानी देकर बचा लिया जाए .

मगर हमें बताया गया कि एक बार बच्चों को हाथ लगाया तो फिर नर गौरैया उन्हें छोड़ देगी .

इधर हम सब बच्चों ने मिलकर नन्ही गौरैया को पूरे सम्मान से बाहर वाले मैदान में दफनाया . और उसके ऊपर होली में बचे गुलाल से Good Bye लिखा .

पूजा घर से भगवान के गले से माला चुराकर उसे सजाया गया . उसकी क़ब्र ( या समाधि) पर एक पुरानी लाल पतंग से एक झंडी बना कर भी लगाई गई .

हम सभी बच्चों ने उस नन्हीं चिड़िया के देहविलय का वास्तव में सोग मनाया .

मेरी दो छोटी बहनों ने तो उस दिन दोपहर का खाना भी नहीं खाया.

उधर मेरी दादी भी चिड़िया के भूखे नन्हें बच्चों को लेकर परेशान थीं और सुबह से उस चिड़े के ग़ायब होने पर कलप रही थीं.

दादी बर्तन माँजते हुए बड़बड़ा रही थीं …

निगोड़ा छोटे छोटे बच्चों को छोड़कर न जाने कहाँ भाग गया , कैसा निर्मोही है रे !!! इसकी जगा चिरैया होती तो ऐसे मुँह छिपा कर भाग जाती क्या ??? कभी न जाती !!!

घोर कलजुग आ गया …

“ये मरद की जात ऐसी ही होवै”

उनका गुस्सा चिड़े से शुरू होकर पूरी संपुर्ण पुरुष जाति पर आ गया…धीरे धीरे शाम होने को आई मगर चिड़े महाशय का अभी तक कुछ अता पता नहीं था .

नन्हें बच्चों की आवाज़ में कमज़ोरी साफ नज़र आने लगी थी.

सबकी बेचैनी बढ़ती जा रही थी कि चिड़िया के नन्हें बच्चों का क्या होगा ?

लेकिन शाम होने से पहले ही कुछ ऐसा हुआ जिसकी हमने कल्पना भी न की थी…

अचानक चिड़े महाशय न जाने कहाँ से एक मादा चिड़िया को साथ ले आये , और आते ही दोनों ने पहले की तरह बच्चों को भोजन लाकर खिलाना प्रारम्भ कर दिया .

हम सभी कुदरत का यह खेल देखकर विस्मय से भर गए…

दादी के चेहरे पर भी मुस्कराहट आ गई .

दादी कमरे में आईं और घोंसले की तरफ देखते हुए मुस्करा कर बोलीं …

“मुए से एक दिन की भी सबर ना हुई , जाने कहाँ से पकड़ लाया नई चिरैया ” मुआ बहुत चतुर है रे !!

दुपट्टे में मुँह छिपा कर हँसते हुए बोलीं

“मरद की जात ऐसी ही होवै…”

मैं आज भी इस घटना से उठे सवालों पर सोचते हुए हैरान हो जाता हूँ

उस नर चिड़े ने कौन सी भाषा में अपनी व्यथा उस नई चिड़िया को समझाई होगी ???

कैसे उसे मनाया होगा ???

वो चिड़िया भी क्या सुनकर तैयार हो गई होगी ???

ये सोचकर मन आज भी आश्चर्य से भर जाता है

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