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माता तू दया करके, कर्मों से छुड़ा देना।
इतनी सी विनय तुमसे, चरणों में जगह देना ।।
माता मैं आज भटका हूँ, माया के अँधेरे में,
कोई नहीं मेरा, इस कर्म के रेले में।
कोई नहीं मेरा, तुम धीर बंधा देना,
इतनी सी विनय तुमसे, चरणों में जगह देना।।(1)
जीवन के चौराहे पर, मैं सोच रहा कबसे,
जाऊँ तो किधर जाऊँ, ये पूछ रहा मनसे।
पथ भूल गया हूँ मैं, तुम राह बता देना,
इतनी सी विनय तुमसे, चरणों में जगह देना॥(2)
लाखों को उबारा है, मुझको भी उबारो तुम,
मझदार में नैया है, उसको भी तिरा दो तुम।
मझदार में अटका हूँ, मुझे पार लगा देना,
इतनी सी विनय तुमसे, चरणों में जगह देना।।(3)
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