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शौर्य की कहानी : - जसवंत सिंह रावत - Jaswant Singh rawat

72 घंटे भूखा प्यासा रहकर 300 चीनियों को ढेर कर वीरगति पाने वाले भारतीय सैनिक के शोर्य की कहानी......Story of Rifleman Jaswant Singh Rawat :  1962 की जंग के नायक राइफलमैन जसवंत सिंह रावत (Rifleman Jaswant Singh Rawat) का जन्म 19 अगस्त 1941 को उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले में हुआ था. भारतीय सेना में उनका चयन गढ़वाल राइफल्स (Garhwal Rifles ) के लिए किया गया. सेना में शामिल होने के कुछ ही दिन बाद 1962 की जंग शुरू हो गई थी. इस जंग में अरुणाचल में नूरानांग की लड़ाई (battle of Nuranang) के दौरान उन्होंने अदम्य साहस का परिचय दिया. रावत ने अकेले ही चीन के 300 से ज्यादा सैनिकों को मौत की नींद सुला दी थी. जसवंत सिंह रावत को इस वीरता के लिए महावीर चक्र (Maha Vir Chakra posthumously) से सम्मानित किया गया. 2019 में जसवंत की कहानी पर एक हिंदी फिल्म '72 ऑवर्स: शहीद हू नेवर डाइड' (72 Hours: Martyr Who Never Died) भी आई..... जसवंत सिंह रावत की कहानी (Story of Rifleman Jaswant Singh Rawat)  1962 की जंग में भारतीय सेना की एक पोस्ट... आज इसे जसवंतगढ़ (Jaswantgarh) के नाम से जाना जात...

बेकिंग सोडा और बेकिंग पाउडर में क्या फर्क है ? और ये क्या क्या काम आते है ?

क्या आपको पता है ?  बेकिंग सोडा vs बेकिंग पाउडर – क्या फर्क है? 🥄 Baking Soda (बेकिंग सोडा) 👉 रासायनिक नाम: Sodium Bicarbonate 👉 यह तभी एक्टिव होता है जब इसमें कोई एसिडिक चीज़ (जैसे दही, नींबू, छाछ) मिलाई जाए। 👉 उपयोग: ब्रेड, कुकीज़, कुछ केक और पकौड़ों में 👉 अधिक मात्रा में डालने पर कड़वा स्वाद दे सकता है। 👉 असर: रेसिपी को जल्दी फुलाता है (immediate reaction) 👉 बिना एसिड के यह काम नहीं करता। 💡 टिप: अगर रेसिपी में दही, नींबू या सिरका है – तब Baking Soda इस्तेमाल करें। Baking Powder (बेकिंग पाउडर) 👉 इसमें Sodium Bicarbonate + Acidic Agent + Cornstarch होता है। 👉 एक्टिवेशन के लिए सिर्फ नमी और गर्मी चाहिए – कोई एसिड अलग से नहीं चाहिए। 👉 उपयोग: केक, स्पॉन्ज केक, मफिन, पैनकेक्स 👉 यह डबल रिएक्शन करता है – एक बार पानी से और दूसरी बार गरमी से। 👉 स्वाद में कोई कड़वाहट नहीं होती। 💡 टिप: अगर रेसिपी में कोई एसिड नहीं है, तो Baking Powder का इस्तेमाल करें।  Final Comparison  Baking Soda Baking Powder एसिड चाहिए नहीं चाहिए जल्दी असर धीरे-धीरे असर तीव्र असर ...

रश्मिरथी - वर्षों तक वन में घूम-घूम कविता - रामधारी सिंह दिनकर

वर्षों तक वन में घूम-घूम, बाधा-विघ्नों को चूम-चूम,   सह धूप-घाम, पानी-पत्थर, पांडव आये कुछ और निखर। सौभाग्य न सब दिन सोता है, देखें, आगे क्या होता है। मैत्री की राह बताने को, सबको सुमार्ग पर लाने को, दुर्योधन को समझाने को, भीषण विध्वंस बचाने को, भगवान् हस्तिनापुर आये, पांडव का संदेशा लाये। 'दो न्याय अगर तो आधा दो, पर, इसमें भी यदि बाधा हो, तो दे दो केवल पाँच ग्राम, रक्खो अपनी धरती तमाम। हम वहीं खुशी से खायेंगे, परिजन पर असि न उठायेंगे! दुर्योधन वह भी दे ना सका, आशिष समाज की ले न सका, उलटे, हरि को बाँधने चला, जो था असाध्य, साधने चला। जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है। हरि ने भीषण हुंकार किया, अपना स्वरूप-विस्तार किया, डगमग-डगमग दिग्गज डोले, भगवान् कुपित होकर बोले- 'जंजीर बढ़ा कर साध मुझे, हाँ, हाँ दुर्योधन! बाँध मुझे। यह देख, गगन मुझमें लय है, यह देख, पवन मुझमें लय है, मुझमें विलीन झंकार सकल, मुझमें लय है संसार सकल। अमरत्व फूलता है मुझमें, संहार झूलता है मुझमें। 'उदयाचल मेरा दीप्त भाल, भूमंडल वक्षस्थल विशाल, भुज परिधि-बन्ध को घेरे हैं, मैनाक-मेरु पग मेरे हैं। दिप...

झाँसी की रानी by सुभद्राकुमारी चौहान - खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी

नोट - प्रस्तुत पाठ NCERT की कक्षा 6 के पाठ्यक्रम में शामिल है। सिंहासन हिल उठे, राजवंशों ने भृकुटी तानी थी, बूढ़े भारत में भी आई फिर से नई जवानी थी, गुमी हुई आज़ादी की क़ीमत सबने पहचानी थी, दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी, चमक उठी सन् सत्तावन में वह तलवार पुरानी थी। बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥ कानपूर के नाना की मुँहबोली बहन 'छबीली' थी, लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी, नाना के संग पढ़ती थी वह, नाना के संग खेली थी, बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी, वीर शिवाजी की गाथाएँ उसको याद ज़बानी थीं। बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥ लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार, देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार, नक़ली युद्ध, व्यूह की रचना और खेलना ख़ूब शिकार, सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना, ये थे उसके प्रिय खिलवार, महाराष्ट्र-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी। बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थ...

तृप्ति डिमरी की जीवनी - Tripti dimri ki jivni in Hindi

तृप्ति डिमरी ने अपने फिल्मी करियर में अपनी पहचान बनाने के लिए कई संघर्ष किए हैं। उनकी खासियत है कि वे प्रामाणिक और भावनात्मक रूप से गहरी भूमिकाओं को प्राथमिकता देती हैं। यहां उनकी जीवनी के कुछ और पहलू दिए गए हैं। प्रारंभिक जीवन तृप्ति का जन्म 23 फरवरी 1994 को हुआ। उनका परिवार उत्तराखंड से है, लेकिन उनका पालन-पोषण दिल्ली में हुआ। बचपन से ही उन्हें अभिनय और कला के प्रति रुचि थी। वे न केवल पढ़ाई में बल्कि सह-पाठयक्रम गतिविधियों में भी सक्रिय थीं। करियर की शुरुआत पोस्टर बॉयज (2017): इस फिल्म में तृप्ति का किरदार छोटा था, लेकिन उन्होंने अपने अभिनय कौशल से ध्यान आकर्षित किया। लैला मजनू (2018): इम्तियाज अली द्वारा प्रस्तुत इस फिल्म में तृप्ति ने लैला का किरदार निभाया। उनकी मासूमियत और गहराई से भरी अदाकारी ने दर्शकों का दिल जीत लिया। बुलबुल (2020): नेटफ्लिक्स की इस फिल्म ने तृप्ति के करियर को नई ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया। इसमें उन्होंने एक रहस्यमय और सशक्त महिला का किरदार निभाया। प्रसिद्धि और प्रशंसा तृप्ति को उनकी फिल्मों के लिए कई पुरस्कार और सम्मान मिले हैं। फिल्मफेयर ...